Saturday, September 20, 2008

Ek baar to aao...

My 2nd poem...dont remember when I wrote this...!!

दो क़दम साथ चले,
और फ़िर छूट गए...!!

साथ शुरू किया था ये सफर,
एक था रास्ता,
पर मंजिलें थीं जुदा...!!

कई लहरें थीं मन में,
अरमां भी कई थे आँखों में,
यही आरजू थी,
की ये सफर रहे बरक़रार,
और अगर ख़त्म हो,
तो एक ही मंजिल पर...!!
क्यूंकि, सफर नही रहते,
हमेशा बरक़रार...!!

मंजिलों और रास्तों के जंजाल में,
अभी उलझा ही था मैं,
की सामने वाली पहाडी पर,
ठहरी हुई धुंध में,
तुम ओझल हो गए...!!

चाहा की चीख कर,
पुकारूं तुम्हे,
पर नहीं निकली आवाज़...
शायद टूट गया था मैं...!!

बिखरा हुआ उसी रास्ते पर,
पड़ा हूँ मैं,
इसी उम्मीद में,
की कब उस धुंध से,
एक परी की तरह निकल के,
तुम आओ...
मुझे बटोर के अपनी बाहों में,
उस मंजिल की ओर रुख करो,
जहाँ अपना हो इक आशियाँ...

मैं अकेला हूँ...
चाह कर भी उठ नही सकता,
एक सहारा दे कर मुझे उठाओ,
हर कतरे को जोडो,
और चाहो तो फ़िर से तोड़ जाओ,
पर एक बार तो आओ...!!

2 comments:

Unknown said...

Really good and touching too.

shikha said...

hey forget to write that ur really write a gud poems. keeps on writing them....