इश्क में हम भी जां लुटा देते,
इश्क करना मगर नहीं आया!
इतने मुश्ताक़ तेरे वस्ल को थे,
दो घड़ी भी सबर नहीं आया!
नूर तेरा बन के चाँदनी बिखरा,
हम तलक दीद भर नहीं आया!
तेरे आने के लाख वादे थे,
यक़ीन हमको पर नहीं आया!
क़ब्र पे मेरी आके रोया वो,
क्या हुआ गर शहर नहीं आया!