Saturday, November 29, 2014

Aajkal

This poem...I can't remember exactly when I wrote it, but it was when I was about to leave Bangalore and come to Delhi for good!

हर रात की तन्हाई से
होती हैं बातें आजकल !
बातें बहुत सारी हैं, पर
छोटी हैं रातें आजकल !

मयख़ाने की जानिब कभी
होता नहीं जाना मगर ,
तिश्नगी अश्क़ों से दिल की
हैं बुझाते आजकल !

क्या कोई तक़लीफ़ पहुँचायेगा
अब दूजा हमें ,
राह चलते ख़ुद ही ठोकर
हम हैं खाते आजकल !

क्या बताने से किसी को
दर्द कम होगा कहीं ?
ये ग़म ए दिल ख़ुद ही को
हम हैं सुनाते आजकल !